साईं बाबा के अवतारी होने का रहस्य


साईं बाबा के जीवन काल में ही कई लोगों ने उनके अवतारी होने का रहस्य जान लिया था। कुछ सन्तों ने भी उन्हें अच्छी तरह से पहचान लिया था। वे ब्रह्माण्ड के केन्द्र थे। मनुष्य जीवन का एकमात्र उद्देश्य है मोक्ष प्राप्त कर जन्म-मरण के बन्धन और कष्ट से मुक्ति पाना। जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा तभी ही मिल सकता है जब भगवान की कृपा होगी। सन् 1918 और 2013 के बीच बहुत कुछ परिवर्तन हुआ है। 

आज सन् 2013 में यह कहना कठिन है कि आज भगवान को कितने लोग मानते हैं और कितने लोग सच्चे हृदय से धर्म की ओर झुके हुये हैं। पहले सन्त-महात्मा पावस ऋतु में जगह जगह चातुर्मास किया करते थे - क्या आज वही परिस्थिति है? रामचरित मानस पठन के लिये आयोजन किये जाते थे। लोगों की प्रवृति धार्मिक थी। अब तो लगता है कि ईश्वर को भूल जाने में ही लोग जीवन की सार्थकता समझने और मानने लगे हैं। स्वार्थ सर्वत्र प्रबल हो गया है।१ पाप ही पुण्य माना जाने लगा है। जो जितना ही अधिक धूर्त है वही सज्जन समझा जाने लगा है। भ्रष्टाचार सर्वत्र व्याप्त है। समाचार पत्रों के पन्ने भ्रष्टाचार, अनाचार, बलात्कार, हत्या, अपहरण आदि महापापों के समाचारों से भरे पड़े रहते हैं। स्वार्थी ही परमार्थी कहलाने लगे हैं। अध्यात्म की बात कोई करता हुये नहीं जान पड़ता। भौतिक वाद अनन्त काल से धर्म प्राण भारत को निगल रहा है। 

जुए के क्षेत्र का विस्तार बढ़ गया है। लोग लगभग अधम, असुर और अभिमानी हो गये हैं। रक्षक ही भक्षक बनते जा रहे हैं। जब कोई धर्म और परमात्मा की बातें करता है तब लोग उसका मखौल उड़ाते हुये से जान पड़ते हैं। क्या भगवान अब अवतार लेने और धर्म की संस्थापना करने के तैयार नहीं है? ऐसा प्रतीत होता है कि अब धार्मिक वातावरण शायद नहीं उभरेगा। भगवान को तो सब कुछ मालूम है तो भी वह अवतार क्यों लेगा? परमात्मा तो माया से अलिप्त है और आज संसार में झूठ, फरेब और माया तथा असत्य का ताण्डव हो रहा है। यह सब कुछ अन्तर्यामी साईं बाबा को ज्ञात है। वे सब कुछ सुधार सकते हैं किन्तु आवश्यकता है भगवान, सन्त, गुरु और धर्म के प्रति श्रद्धा रखने की। कहा नहीं जा सकता कि भगवान दानवता से परिपूर्ण वर्तमान कृत्रिम मानवता का सर्वनाश करने वाले हैं या अपनी शरण में आये हुये मानवों के द्वारा मानवता की रक्षा करने वाले हैं। अन्ततः ईश्वर की इच्छा ही प्रबल होती है - ईश्वरेच्छा गरीयसी। 

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