साईं बाबा - एक हठयोगी


साईं बाबा के तमाम चमत्कारों का जिक्र आपने सुना भी होगा और आप में से कई साईं भक्त हैं जिन्होंने उनके चमत्कारों को देखा भी है। लेकिन बहुत कम साई भक्त ऐसे हैं जो ये जानते हैं कि बाबा ने इस शक्ति को हासिल करने के लिए योग की कैसी साधना की थी।

साईं चरित्र किताब के चौदहवें अध्याय में एक बड़ी ही विचित्र घटना का जिक्र है। उस घटना से पता चलता है कि साईं बाबा एक बहुत बड़े योगी भी थे। और योगी भी ऐसे वैसे नहीं बल्कि एक बहुत बड़े हठ योगी।

शिर्डी के आस पास के इलाकों में आज भी ऐसे साईं भक्त हैं जो उनकी इस विद्या का रहस्य जानते हैं। वैसे तो साईं 1860 में पहली बार शिर्डी आए थे। तकरीबन सोलह साल की उम्र में।

लिहाजा वहां के लोग उन्हें कोई खास तरजीह नहीं देते थे। लेकिन शिर्डी में एक द्वारकामाई की कुटिया थी जहां वो लोगों के सारे ताने सहने के बावजूद रहते थे और गरीबों के दुख दूर किया करते थे। धीरे धीरे उनके चमत्कारी इलाज की बात आसपास के लोगों में फैलने लगी।

लेकिन बाबा के इन चमत्कारों का हठ योग से क्या रिश्ता था। रिश्ता था। म्हाल्सापति नागरे और बैजाबाई नाम के दो साईं भक्तों ने अपनी आंखों से उन्हें हठयोग करते देखा था। वो हठयोग की कौन सी विधा में महारत रखते थे ये जानने से पहले आपको जानना होगा एक ऐसी जगह को जहां बाबा इस विद्या की साधना करते थे।

जैसा कि आप जानते हैं कि द्वारकामाई में बाबा भक्तों का इलाज करते थे। वहीं से 200 मीटर की दूरी पर लेंडीपाडा नाम की एक जगह थी जो अब एक सुंदर बगीचे में तब्दील हो गई है। यहीं पर एक कुंआ था जहां बाबा अक्सर स्नान करने आते थे। स्नान करने के बाद वो हठयोग की ऐसी विद्या की साधना करते थे जिसके बारे में सुनकर आप भी दंग रह जाएंगे।

वैसे तो हठ योग में ऐसी ऐसी साधना है जिनपर आम आदमी यकींन नहीं कर सकता। लेकिन साईं भी हठ योग करते थे ये बात बहुत कम ही लोग जानते हैं।

साईं चरित्र में जिक्र है कि बाबा कुंए पर स्नान करने के बाद उत्तर दिशा में मुंह कर के बैठ जाते थे। और अपने हठ योग बल से पेट की अंतड़ियों को बाहर निकाल देते थे।

हालांकि ये साधना वो रोज नहीं किया करते थे। हठ योग की इस साधना का उपयोग वो पूर्णिमा के दिन ही करते थे।

उनके हठ योग की एक और मिसाल तब सामने आई जब उन्होंने अपने भक्तों से कहा कि वो दो दिनों तक किसी से बात नहीं कर पाएंगे। और ऐसा उन्होंने इसलिए कहा क्योंकि उन्हें शव आसन करना था।

शव आसन भी हठ योग के अहम साधनों में से एक है। इसमें साधक एक शव की तरह जमीन पर सो जाता है। बहुत हद तक योगी इसका उपयोग योग निद्रा के लिए करते हैं।

लेकिन इस आसन के सध जाने के बाद योगी की आत्मा शरीर को छोड़कर बाहर भी निकल सकती है। अगर साईं बाबा इस आसन को करते थे तो इसका मतलब ये हुआ कि उन्हें हठ योग में महारत हासिल थी।

इसका मतलब ये हुआ कि साईं साधना का सबसे बड़ा मार्ग हठ योग ही था। ये तो कुछ लोगों के अनुभव हैं। लेकिन बीच बीच में साईं लंबे समय के लिए कहीं चले जाते थे। कई बार अपने खास भक्तों को भी कुछ नहीं बताते थे। जाहिर है कहीं न कहीं वो अपनी साधना में इतने रम जाते थे कि समय का ज्ञान नहीं होता था।

दुनिया आज साईं का चमत्कार देख रही है। अपने आखिरी वक्त से थोड़ा पहले उन्होंने अपने भक्त को कहा भी था कि वो शरीर छोड़ देंगे लेकिन जाएंगे कहीं नहीं। इसलिए जो भी भक्त श्रद्धा से उनके दरबार में जाएगा उसकी मुराद जरुर पूरी होगी। और हो भी यही रहा है। ॐ साईं राम .. 

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