श्रद्धा और सबूरी


जिनके मन में आध्यात्मिक शांति की चाह के साथ सुख की कामना नजर आती है, वह हमेशा से इनसान के मन में रही है। गत ढाई-तीन दशक से साँईबाबा के प्रति लोगों की आस्था में निरंतर इजाफा हो रहा है। यही वजह है कि साँईबाबा उत्सव में शामिल होने अमीर-गरीब व मध्यम वर्ग तथा सभी जाति-धर्म के भक्त बड़ी तादाद में आते हैं। 

इनसान अपनी श्रद्धा को हमेशा निजी सुख-दुःख से जोड़कर देखता आया है। आज के बदलते आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संक्रमण के दौर में अपने इर्द-गिर्द की अस्थिरता, अनिश्चितता के बीच जिंदगी की रेलमपेल के माहौल में नए मौके सामने आ रहे हैं। ऐसे हालात में भक्त दरअसल कुछ हकबकाहट में साँईबाबा के प्रति श्रद्धा की महीन डोर को कसकर थाम शिर्डी आता है, जहाँ उसके तमाम सवालों के जवाब मिलते हैं।

साँईबाबा के बताए 'श्रद्धा और सबूरी' के इन शब्दों का इस्तेमाल कई भक्त उनका आशीर्वाद पाने के लिए भी करते हैं। जैसे किसी को कोई नया काम हाथ में लेना हो तो वह 'श्रद्धा', 'सबूरी', 'हाँ' या 'नहीं' ऐसी चार चिट्ठियाँ तैयार कर साँईबाबा के सम्मुख रखता है और श्रद्धापूर्वक उसमें से एक चिट्ठी खोलता है। यदि उसमें 'हाँ' है तो बाबा का आशीर्वाद मान लेता है और यदि जवाब 'नहीं' मिलता है तो बाबा का इनकार मान नए काम का इरादा छोड़ देता है।

यदि चिट्ठी का जवाब 'श्रद्धा' है तो बाबा में श्रद्धा रख काम आगे शुरू किया जाता है, लेकिन यदि जवाब 'सबूरी' हो तो थोड़ा संयम रखें, ऐसा अर्थ निकाला जाता है। बाबा का आशीर्वाद पाने वाले ऐसे कई भक्त शिर्डी में मिल जाएँगे।

‪#‎exposeantisai‬ || ॐ साईं राम ||

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