क्योंकि ईश्वर के कई स्वरुप हैं...


दो व्यक्ति गिरगिट के रंग को लेकर तीखा विवाद कर रहे थे। एक ने कहा, “ताड के पेड पर वह गिरगिट सुन्दर लाल रंग का है।” दूसरे व्यक्ति ने विरोध करते हुए कहा, “आप भूल कर रहे हैं, गिरगिट का रंग लाल नहीं, नीला है।” 

जब वे वाद-विवाद से हल नहीं निकाल पाए, तो दोनों उस व्यक्ति के पास गए जो सदैव उस पेड के नीचे ही रहता था और उसने गिरगिट को सभी रंग बदलते हुए देखा था।

एक ने कहा, “महोदय, क्या उस गिरगिट का रंग लाल नहीं है?” उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, “जी हां महोदय ।” दूसरे विवादी ने कहा, “आप क्या कह रहे हैं? यह कैसे हो सकता है? उसका रंग लाल नहीं, नीला है ।” 

उस व्यक्ति ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया, “जी हां महोदय।” उस व्यक्ति को ज्ञात था कि गिरगिट वह जानवर है जो सदैव अपना रंग परिवर्तित करता रहता है, इसलिए उन्होंने दोनों विरोधाभासी वक्तव्यों के उत्तर में “हां” कह दिया था। 

“सत्-चित्त-आनंद” परमेश्वरके भी इसी प्रकार कई स्वरुप होते हैं । वह भक्त जिसने ईश्वर के एक ही स्वरुप के दर्शन किये हों, वह उन्हें केवल उसी स्वरुप में जानता है । 

परन्तु जिसने उनके अनेक स्वरूप के दर्शन किये हों, वह यह कहने के स्थिति में है कि, “यह भी उसी ईश्वर का स्वरूप है, क्योंकि ईश्वर के कई स्वरुप हैं।” उनका खरा स्वरुप क्या है या कोई स्वरुप नहीं है या उनके अनेक स्वरुप हैं, इस विषयमें कोई भी नहीं जानता।” – स्वामी रामकृष्ण परमहंस

 ‪#‎exposeantisai‬

No comments:

Post a Comment