द्वारिकामाई मस्जिद की अखण्ड धूनी


दूसरी बार साईं बाबा सन् 1858 ई. में शिरडी आये थे। शिरडी में एक टूटी-फूटी मस्जिद थी। साईं बाबा ने उसी मस्जिद को अपने निवास स्थान बनाया। कवितावली रामायण में सन्त तुलसीदास जी ने लिखा है कि, 

'मांगि के खइबो, मजीद में सोइबो, लैबो को एक न दैबो को दोऊ।' 

तुलसीदास जी के इस कथन को साईं बाबा ने सत्य कर दिखाया। वे मस्जिद में रहने लगे। उन्होंने उस मस्जिद का नाम "द्वारिका माई मस्जिद" रख दिया। वहाँ पत्थर की एक चौकी थी जिस पर साईं बाबा बैठते थे। वे अक्सर मस्जिद की एक दीवाल के सहारे खड़े रह कर भगवान का चिन्तन करते थे। 

द्वारिका माई मस्जिद में साईं बाबा धूनी जलाते थे। उनकी धूनी अखण्ड थी अर्थात् रात-दिन जलती रहती और कभी बुझती नहीं थी। साईं बाबा धूनी के बाजू बैठे रहते थे। ‪#‎exposeantisai‬

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