स्वामी स्वरूपानंद के साईं बाबा पर दिए बयानों का पर्दाफाश

भारत के मूल निवासी और आज के अधिकांश निवासी सनातन धर्म को अपनाते हैं। सनातन धर्म यह स्वीकार करता है कि यदि कोई व्यक्ति किसी भी इष्ट में आस्था नहीं रखता एवं नास्तिक है, तो भी यदि उसका आचरण और कर्म सही हैं तो वह धार्मिक होगा। हर धार्मिक व्यक्ति को मोक्ष का अधिकार है व मोक्ष आस्था से नहीं, कर्म से मिलता है। जो अपने आपको हिंदू कहते हैं, वे भी इस सनातन परंपरा के अंग हैं, हालांकि प्रचलन में अब हम सनातन धर्म एवं हिंदू धर्म में अंतर नहीं देखते।

हिंदू धर्म में पूरी छूट है कि हर व्यक्ति मोक्ष का अपना-अपना रास्ता खोजे। वह रास्ता आस्था का भी हो सकता है या नास्तिकता का भी। हिंदुओं को पूरी छूट है कि वे 33 करोड़ देवी-देवताओं में से जिस पर भी आस्था रखना चाहें, रखें। इस धर्म में जब बुराइयां आईं, तब गौतम बुद्ध का अवतरण हुआ एवं बौद्ध धर्म का सृजन हुआ। परंतु आदि शंकराचार्य द्वारा धर्म को पुन: परिशोधित करने के बाद से भारत से बौद्ध धर्म विलुप्तप्राय हो गया। 

आदि शंकराचार्य सुधारक थे। उन्होंने अपने चार मठ - पुरी, श्रंगेरी, द्वारिका एवं ज्योतिर्मठ - चार दिशाओं में स्थापित किए, जिससे भारत आध्यात्मिक दृष्टि से एक बने। द्वारिका मठ के शंकराचार्य फिलहाल स्वरूपानंद हैं, जिनकी धार्मिक यात्रा की शुरुआत गोटेगांव से हुई। द्वारिका पीठ के शंकराचार्य होने के नाते वे आदि शंकराचार्य के उत्तराधिकारी हैं और गोटेगांव में श्रीधाम के भी शंकराचार्य हैं। मेरे विचार से इस पदवी का आदि शंकराचार्य के मठों के मठाधीशों के अतिरिक्त किसी को अधिकार नहीं है। वैसे भी स्वरूपानंद ने एक दल विशेष को अपना राजनीतिक आशीर्वाद दिया है, जिस कारण उन्हें पूर्व की सरकार के समय सरकारी शंकराचार्य के नाम से पहचाना जाता था।

महाराष्ट्र में शिर्डी नामक गांव में साईं बाबा के नाम से पहचाने जाने वाले एक फकीर संत हुए थे और उन्होंने सौहार्द, सादगी और ईमानदारी का पैगाम दिया। जब तक साईं बाबा जीवित थे, उन्होंने अपनी जिंदगी पूर्णत: सादगी से बिताई, परंतु उनके पैगाम से धीरे-धीरे अनेक लोग प्रभावित हुए। बाद में श्रद्धालुओं ने शिर्डी में भव्य आश्रम का निर्माण किया। साईं बाबा पर लोगों की बढ़ती हुई आस्था को देखते हुए स्वरूपानंद ने मुहिम छेड़ दी कि साईं बाबा न तो भगवान हैं और न संत, उनकी पैदाइश एक मुस्लिम परिवार में हुई थी और हिंदुओं द्वारा उन पर श्रद्धा रखना एक धर्मविरोधी पाप है।

हिंदू धर्म की जो एक महान उपलब्धि मानी जाती है, वह है सहनशीलता। क्या स्वरूपानंद का साईं बाबा पर यह आक्रमण इस सहनशीलता का द्योतक है? जिस धर्म में विचार, आस्था व उपासना की पूरी छूट हर इंसान को दी गई है, क्या वहां साईं बाबा पर आक्रमण करने का कोई आधार है? हिंदू धर्म अपने खुलेपन की वजह से ही आज विश्व का सबसे पुराना धर्म है, जिसे कोई तोड़ नहीं सका। सनातन धर्म तब तक जीवित रहेगा, जब तक उसमें खुलापन बना रहेगा। मैं उन लोगों को हिंदू नहीं समझता, जो एक खुले धर्म को एक संकीर्ण ढांचे में कैद करने का प्रयास करना चाहते हैं।

गत दिनों एक अखबार में स्वरूपानंद का सिवनी में दिया गया बयान प्रकाशित हुआ था, जिसमें उन्होंने कहा था कि साईं बाबा एक पिंडारी और उसकी रखैल के पुत्र थे और उनका वास्तविक नाम चांद मियां था। उन्होंने कहा कि वे अफगानिस्तान से अहमदनगर आए और वहां उसका बेटा हुआ। एक वेश्या का बेटा और वह भी मुसलमान, ऐसा संत कैसे हो सकता है, जिसकी हिंदू पूजा करें? तथ्य यह है कि गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक ने 19वीं सदी के पहले और दूसरे दशक में पिंडारियों का समूल नाश कर दिया था। इसका मतलब यह है कि एक पिंडारी का पुत्र 20वीं सदी के प्रारंभ में ही लगभग 100 वर्ष का होगा, जबकि साईं बाबा की मृत्यु तो सन् 1918 में 80 वर्ष की आयु में हुई थी।

जब दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब स्वरूपानंद ने राघौगढ़ में नवदुर्गा प्रसंग का आयोजन किया था। चूंकि वे एक मुख्यमंत्री के मेहमान थे, इस कारण तत्कालीन ग्वालियर संभागायुक्त सर्जीयस मिंज, जो स्वयं ओरांव जनजाति के हैं एवं ईसाई हैं, को भी राघौगढ़ जाना पड़ा था। दिग्विजय सिंह ने स्वरूपानंद का स्वागत साष्टांग दंडवत करके किया, जबकि मिंज ने उन्हें आदर से नमस्कार किया। इसके बाद स्वरूपानंद का प्रवचन हुआ, जिसमें उन्होंने कहा कि ब्राह्मण की विशेषता उसका ज्ञान है, क्षत्रिय की विशेषता उसका शौर्य है, वैश्य की विशेषता उसकी वाणिज्यिक कुशलता है और शूद्र की विशेषता उसकी लंबी आयु है। मिंज को उनकी बात समझ नहीं आई तो उन्होंने अपने निजी सचिव, जो ब्राह्मण थे, से इसका आशय पूछा। उत्तर मिला : आशय यह है कि शूद्र जितने लंबे समय तक जीवित रहेगा, सवर्णों की चाकरी करता रहेगा।

मेरा जन्म शूद्र परिवार में नहीं हुआ। मैं कभी सामाजिक अन्याय का शिकार नहीं बना। मुझे कभी वह नहीं भुगतना पड़ा, जो दलित को भुगतना पड़ता है। मेरा जन्म सौराष्ट्र के एक नागर परिवार में हुआ। यह तो पूरे गुजरात की मान्यता है कि नागरों को ब्राह्मणों के ब्राह्मण कहा जाता है। मेरे पिता आईसीएस अधिकारी थे व इस कारण मुझे हर अच्छी सुविधा प्राप्त थी। लेकिन अगर किसी व्यक्ति का जन्म ऐसे परिवार में हो, जिसे उन सामाजिक सुविधाओं से वंचित रखा गया हो जो मुझे प्राप्त थीं तो क्या उसे प्रगति, सम्मान और न्याय का अधिकार नहीं है? भले ही साईं बाबा एक वेश्या के पुत्र क्यों न हों, क्या वे साधना के माध्यम से एक संत का दर्जा प्राप्त नहीं कर सकते? स्वरूपानंद बतलाएं कि किस धर्मग्रंथ में लिखा है कि यदि हमारे माता-पिता ने कोई अनैतिक काम किया हो तो पुत्र स्वयमेव अनैतिक हो जाता है? 

जब सनातन धर्म स्वीकार करता है कि 'वसुधैव कुटुंबकम्", अर्थात हम सब एक कुटुंब के हैं, तो इसमें ऊंच-नीच का क्या प्रश्न है? कबीर भी तो एक जुलाहे थे। वाल्मीकि हरिजन थे, परंतु क्या उनकी रामायण स्वरूपानंद नहीं पढ़ते?

मैं स्वयं नास्तिक नहीं हूं, परंतु मैं ऐसे धर्म को स्वीकार करने को तैयार नहीं हो सकता, जिसमें सबकी समानता न हो, जिसका इष्ट करुणामय न हो और जिसमें धर्म के ठेकेदार अपना वर्चस्व बनाने के लिए दूसरों पर प्रहार करें। 

कुरान शरीफ में लिखा है कि 'मेरे लिए मेरा मजहब और तेरे लिए तेरा।" क्या स्वरूपानंद भी यह स्वीकार नहीं कर सकते कि उनके भक्तों की उनमें आस्था और साईं बाबा के भक्तों की उनमें!

लेखक: श्री एम एन बुच  (पूर्व प्रशासनिक अधिकारी)  #ExposeAntiSai

Why War Cry in the Holy Cities: Naga Sadhus Told to Assemble to Battle Sai Baba Followers

A storm is gathering along the banks of the river Ganges. Emergency calls of 'dharma yuddha' are ringing across the akharas of naga sadhus, who have been asked to stand up now to protect the 'sanatan dharma' - Hindu religion.

The militant naga sadhus have been tasked with "restoring the lost glory of the religion" that can allegedly be harmed by followers of certain deified figures, like Sai Baba of Shirdi.

Entangled with the war cry is the 'honour' of a Shankaracharya who feels Sai Baba is certainly not an incarnation of God. To buttress this view of the Shankaracharya across the Hindu matrix, the akhara leaders have asked all the naga sadhus to assemble in Prayag (Allahabad) and Haridwar. Their target will be to formulate a strategy on "demolishing the belief that Sai Baba was a God."

The naga sadhus are believed to be in a state of meditation (tapasya) round the year, except during the Shahi Snan in Kumbh. But now they have been asked to take a break from asceticism and get ready for a war to save the religion.

There are about two lakh naga sadhus in the country. Observers say in case the naga sadhus take to the streets, it could be a major law and order problem. It all began recently when Shankaracharya of Dwarka Peeth, Swami Swaroopanand Saraswati, objected to the worship of 19th-century religious figure Sai Baba by the Hindus. Swami Swaroopanand had said Sai Baba of Shirdi was a Muslim and Hindus should not worship him. He had also claimed that Sai Baba was declared a Hindu avatar by those who have been trying to weaken the Hindu religion.

All of it irked hundreds and thousands of Sai Baba's followers who are now gunning for the Shankaracharya. Swami Swaroopanand's effigies were burnt, and there have been allegations that his stance will promote enmity between the communities.

Caught in the middle of it is BJP leader and Union minister Uma Bharti,who had supported worshipping Sai Baba. Bharti had even said in Haridwar that she sees the "bhagwat satta" (presence of God) in Sai Baba, much to the chagrin of the Shankaracharya and his supporters.

The Shankaracharya retorted by saying that he used to think Bharti was a follower of Lord Ram, but she actually followed a Muslim and because of that she failed to construct the proposed Ram temple in Ayodhya.
Interestingly, Swami Swaroopanand is known to be a harsh critic of the BJP, PM Narendra Modi and the Ram temple movement. He is perceived to be close to the Congress. His jibes come at a time when the BJP is newly in power.

Meanwhile, Swaroopanand's anti-Sai Baba stance has been criticised by many. The Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) had said Swaroopanand's criticism of Sai Baba was unnecessary.

Two days ago, RSS leader Indresh Kumar said in Varanasi that the Shankaracharya shouldn't interfere into the religious affairs of others. "I feel that the saints and seers shouldn't interfere into the affairs of others concerning gods and goddesses," Kumar had said.

Manath Gyan Das, former chief of Akhara Parishad, said: "It is a nonissue. We cannot stop people from worshipping a particular spiritual guru. But Swaroopanand is creating unnecessary controversy for strange reasons."

But the Shankaracharya's supporters are in no mood to relent. They think any attack on their spiritual figurehead - who is revered as a God - is nothing short of an emergency. So, they are counting on the naga sadhus.

Govindanand Brahmchari, secretary of Agni Akhara, said: "There is a religious emergency now and the naga sadhus are expected to take up the job actually assigned by Adi Shanka-racharya who founded the akharas in the eighth century to train the sadhus as protectors of religion. We have asked them to assemble in Prayag and Haridwar."

Acharya Narendra Giri, secretary of Niranjani Akhara said: "Some of our members have already started removing the idol of Sai Baba from the temples... The disrespect that Sai followers have shown towards the Shankaracharya wouldn't be ignored. Our weapon-wielding sadhus would soon take up the issue."

Fakir Who Believed in Unity of Religions Maharashtra has always been known as the land of seers, but Sai Baba of Shirdi stands out for the simple reason that he was from the 19th century and he was photographed.

Though there are a very few photographs of Sai Baba, the fact that his image could be seen in flesh and blood,unlike the corroborated depictions of other saints, seems to be reassuring for his crores of devotees not just in India but abroad too.

There is no information in details about the birth of Sai Baba. One fine day in 1858, he turned up in Shirdi, about 240km from Mumbai, along with a marriage party, according to the Shri Sai Satcharitra, the biography of the saint written by devotee Govind Dhabolkar alias Hemadpant.

The cavalcade alighted near the Khandoba temple at Shirdi where the priest, on seeing the young fakir, welcomed him as Sai, which means both a saint and master. The name stuck to him from then on.

He dressed as a fakir, resided in a dilapidated mosque, chanted 'Allah Malik', and also recited India's holy scriptures. He talked about Brahma Gyana and the Brahman (not the religion but the embodiment of the Brahma). He cultivated a fire in his abode at the mosque and gave its ashes the udi as prasad to his devotees.

He was so untraditional that he smoked a chillam and on certain occasions, offered to his devotees.

To which religion did Sai Baba belong? Unlike the self-appointed apostles of religion, Sai Baba professed unity of all religions and God as it is evident from his slogan 'Sabka Malik Ek'. Hindus refer to him as Sai Nath, as in the yogi belonging to the Nath sect who maintained the tradition of Kundalini awakening through the centuries, while for Muslims he is Sai Baba, an Aulia who had amazing healing powers.

Even before devotees begin flocking to Shirdi to seek his blessings, Dhabolkar in his book has mentioned how Sai Baba shared a good rapport with other saints of those times. The story of 60 years of Sai Baba's life at Shirdi is replete with miracles, including instances of healing. However, among the hundreds of miracles one that is well-known is the one where he lights diyas with water instead of oil.

He took samadhi on October 15, 1918.

Today, the Shri Saibaba Sansthan Trust that runs Sai Baba's place of worship at Shirdi is mammoth organisation, employing more than 2,200 permanent employees and 4,000 contract employees. About 38,000 people come for daily worship at Shirdi, while on holidays and special occasions, it is close to a lakh. jAt 90, Swami Swaroopanand Saraswati, the Shankaracharya of Dwarka Peeth, is mired in controversy for his remark on Sai Baba, a seer revered by people as a God across religions.

Last week, the Shankaracharya described Sai Baba as a Muslim ascetic who could not be worshipped like a Hindu deity. On Sunday, he also taunted Union Water Resources Minister Uma Bharti to clarify whether she
was a Sai or Ram follower. Percived to be close to the Congress party, he created a furore in Varanasi, from where Narendra Modi was fighting an election as BJP's prime ministerial candidate. He forced the BJP to drop its 'Har har Modi, ghar ghar Modi' slogan in the holy town and expressed serious resentment over the 'politicisation' of the sacred mantra, 'Har har Mahadev'.

Swaroopanand also hit out at Modi during the run-up to the last two phases of the Lok Sabha elections, saying "he could not represent Varanasi that is known for its composite secular culture as Modi oversaw a
communal conflagration in Gujarat in 2002".

Born on September 2, 1924, in Madhya Pradesh's Jabalpur town, the Shankaracharya's original name was Pothiram Upadhyay. Leaving home at a tender age of nine, he went about on a pilgrimage where he met and became a disciple of Swami Karpatri alias Hariharananda Sarawati, who, in turn studied under 'Guru Dev' Swami Brahmananda Saraswati.

At 19, he joined the Quit India Movement in 1942 and came to be recognised as a revolutionary sadhu. Going back, after Guru Dev's death in 1953, Swami Shantanand was made the Shankaracharya of the Jyotir
Math. However, instead of him, Swaroopanand adopted a different guru called Swami Krishnabodhashram Maharaj, who was also in parallel made the Shankaracharya by Swami Karpatri.

Politics set in with Swaroopanand becoming the chief of the Ramrajya Parishad Party, which was set up by his original guru Swami Karpatri.

By the early 1980s he managed to get the title of the Dwarka Shankaracharya, though sources said he spent most of his time in Varanasi and Madhya Pradesh, where he was born.



Expose Anti Shirdi Sai Baba: The Real Truth

क्या साईं सम्पत्ति को वक्फ़ बोर्ड में शामिल करने का षडयंत्र है? LIVE TV

ओशो के शिर्डी साईं बाबा के बारे में विचार

इसी पिछली सदी के एक अत्यंत सुंदर व्यक्ति थे शिरडी के साईंबाबा। साईंबाबा मुसलमान थे या हिन्दू कोई निश्‍चित तौर पर नहीं जानता कि वे मुसलमान थे या हिंदू। लेकिन क्योंकि वे एक मसजिद में रहते थे, और वहीँ हरिकीर्तन भी करते थे, उनका एक मित्र और अनुयायी था, हिंदू अनुयायी, जो उन्हें प्रेम करता था, उनका आदर करता; जिसकी साईंबाबा में बहुत आस्था थी। हर रोज वह साईंबाबा के पास आ जाता, उनके दर्शन पाने को, और उनका दर्शन किये बिना वह जाता नहीं था। कई बार ऐसा होता कि उसे सारे दिन प्रतीक्षा करनी पड़ती, लेकिन वह उनका दर्शन किये बिना नहीं जाता। वह खाना नहीं खाता, जब तक साईंबाबा के दर्शन न कर लेता।

एक दिन ऐसा हुआ कि सारा दिन बीत गया, और वहां बहुत—से लोग इकट्ठे हुए थे, एक बड़ी भीड़, इतनी बडी कि वह प्रवेश नहीं कर सका। जब हर कोई चला गया, तो रात को उसने साईंबाबा के चरण—एकर्श किये।

साईंबाबा ने उससे कहा, ‘क्यों तुम नाहक प्रतीक्षा करते हो? यहां आकर मेरे दर्शन करने की कोई आवश्यकता नहीं है, मैं तुम्हारे पास आ सकता हूं। इसे कल से छोड़ दो। अब मैं आ जाऊंगा तुम्हारे पास। इससे पहले कि तुम अपना भोजन लो, तुम मेरा दर्शन पाओगे।’

वह शिष्य बहुत प्रसन्न था। अगले दिन वह प्रतीक्षा ही प्रतीक्षा करता रहा, लेकिन कुछ घटित नहीं हुआ। वस्तुत: बहुत कुछ घटित हुआ, लेकिन उसकी परिकल्पना के अनुसार कुछ घटित नहीं हुआ। शाम तक वह बहुत नाराज हो गया। उसने अभी तक भोजन नहीं लिया था, और क्योंकि साईंबाबा अब भी प्रकट नहीं हुए थे, वह फिर उनके दर्शन के लिए चला गया। वह बोला, ‘ आप वचन देते हैं और उसे पूरा नहीं करते?’

साईंबाबा बोले, ‘सिर्फ एक बार ही नहीं, तीन बार प्रकट हुआ। जब पहली बार मैं आया, मैं एक भिखारी था। तुमने मुझसे कहा, ‘दूर हटो। यहां मत आओ।’ दूसरी बार जब मैं तुम्हारे पास आया, एक बूढ़ी सी के स्‍वप्‍न में., और तुमने मेरी ओर देखा तक नहीं। तुमने अपनी आंखें बंद कर लीं।’ स्रियों की ओर न देखना उस शिष्य की आदत थी। वह स्रियों को न देखने का अभ्यास कर रहा था, इसलिए उसने अपनी आंखें बंद कर ली थीं। साईंबाबा बोले, ‘मैं आया था। लेकिन तुम क्या आशा रखते हो? मैं तुम्हारी आंखों में प्रवेश कर जाऊं—बंद आंखों में? मैं बिलकुल वहीं खड़ा हुआ था, लेकिन तुमने अपनी आंखें बंद कर लीं। फिर तीसरी बार तुम्हारे पास कुत्ते के स्‍वप्‍न में आया, लेकिन तुमने मुझे अंदर नहीं आने दिया। तुम एक डंडा लेकर दरवाजे पर खड़े हो गये।’

और ये तीनों बातें वस्तुत: घटित हुई थीं। ऐसी बातें सारी मानवता के साथ घटित होती रही हैं। भगवत्ता बहुत स्‍वप्‍न में आती है, लेकिन तुममें पूर्वधारणाए होती हैं; तुममें पूर्वगठित परिकल्पना होती है, तुम देख नहीं सकते। परमात्मा को तुम्हारे अनुसार प्रकट होना चाहिए। और वह कभी तुम्हारे अनुसार प्रकट नहीं होता है। वह कभी तुम्हारे अनुसार प्रकट होगा भी नहीं। तुम उसके लिएनियम नहीं हो सकते और तुम कोई शर्तें नहीं बना सकते। जब सारी कल्पनाएं गिर जाती हैं, केवल तभी सत्य प्रकट होता है। वरना कल्पनाशक्ति शर्तें बनाती जाती है और सत्य प्रकट नहीं हो सकता। केवल नग्‍न मन में, शून्य में, खाली मन में ही सत्य प्रकट होता है क्योंकि तब तुम उसे विकृत नहीं कर सकते।

मन की वह वृत्ति जो अपने में किसी विषय—वस्तु की अनुपस्थिति पर आधारित होती है निद्रा है।

पतंजलि: योग-सूत्र–(भाग-1) प्रवचन–5
योग—विज्ञान की शुचिता—प्रवचन—पांचवां

आजादी के आन्दोलन के लिए साईं बाबा का तिलक को परामर्श

आज 1 अगस्त 2013 को श्री बाल गंगाधर तिलक जी की पुण्यतिथि है और इस अवसर पर साईं बाबा के विरोधियों का पर्दाफाश अभियान एक अहम् खुलासा करने जा रहा है - वो यह है कि श्री बाल गंगाधर तिलक जी शिर्डी साईं बाबा के भक्त थे और उनसे अक्सर मिलने भी जाते थे और आज़ादी के आन्दोलन को और प्रखर बनाने हेतु उनसे परामर्श भी लिया करते थे, तिलक जी को हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है, और साईं बाबा ने ही तिलक जी को गाँधी जी के बारे में पहले ही बता दिया था...


इसी विषय पर दक्षिण के सुपरस्टार नागार्जुन ने एक तेलगु भाषा में एक फिल्म का निर्माण भी किया है, इस फिल्म के बारे में टाइम्स ऑफ़ इंडिया का लेख यहाँ क्लिक करके पढ़ भी सकते हैं. ‪#‎exposeantisai‬

साईं बाबा और तिलक जी की गुप्त वार्ता का विवरण हमें श्री खापर्डे के संस्मरण से भी मिलता है जो स्वयं ही श्री बाल गंगाधर तिलक जी को पहली बार 19 मई 1917 को साईं बाबा से मिलवाने ले गए थे - 

Arrival of Bal Gangadhar Tilak at Shirdi
Khaparde came along with Bal Gangadhar Tilak, to Shirdi on 19 May 1917. Khaparde who had come earlier also to Shirdi, had seen the greatness of Baba personally. Hence, he brought Tilak who was the extremist leader in the Indian National Congress and a freedom fighter, to have darshan of Baba and take his advice in the matter of freedom movement. There were proofs that Baba gve Tilak certain advices secretly. According to the then prevailing conditions under British rule, these matters were kept secret. After Tilak left Shirdi, then District Collector of Ahmednagar sent a CID Officer to Shirdi to keep an eye on the activities of Sai Baba and send a confidential report.
There were several proofs to show that Baba predicted that India would certainly become an independent nation, through a non-violent revolution only and not through extremist violent acts. He gave advice to Tilak along the above lines and there were indications that from that day the extremist actions were toned down.
इस पेज की लिंक यहाँ क्लिक करके देखी जा सकती है.

जब एक हिन्दू राष्ट्रवादी श्री बाल गंगाधर तिलक जी जैसा व्यक्तित्व साईं बाबा का भक्त था, तो आज के तथाकथित हिन्दू साईं बाबा का विरोध किस आधार पर कर रहे हैं ???

टोक्यो (जापान) में विराजे श्री साईं